The smart Trick of Hindi poetry That Nobody is Discussing

क्या कहते हो, शेख, नरक में हमें तपाएगी ज्वाला,

गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,

मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,

देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक-सी हाला,

कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल here हो, पर हाला,

तंग गलियारों से गुजरी मैं, कुछ साए मुझसे चिपट गए

किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।५६।

Hi Pal, For starters i wish to say, That is an amazing assortment. If you're able to arrange the poem by makhanlal chaturvedi ji-

इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरुँ,

शांत सकी हो अब तक, साकी, पीकर किस उर की ज्वाला,

मैंने देखा है अभी अभी उसने बिक्रम के प्राण लिए जल्दी बोलो क्या करना है घनघोर घटा घिर जाएगी छिन गया उदय हाथों से यदि मुख पर कालिख लग जाएगी

कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।

लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,

सबक बड़ा तुम सीख चुके यदि सीखा रहना मतवाला,

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